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कविता

स्त्री को समझने के लिए

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी


कैसे उतरता है स्तनों में दूध
कैसे झनकते हैं ममता के तार

कैसे मरती हैं कामनाएँ
कैसे झरती हैं दंतकथाएँ

कैसे टूटता है गुड़ियों का घर
कैसे बसता है चूड़ियों का नगर

कैसे चमकते हैं परियों के सपने
कैसे फड़कते हैं हिंस्र पशुओं के नथुने

कितना गाढ़ा लांछन का रंग
कितनी लंबी चूल्हे की सुरंग

कितना गहरा सृजन का अंधकार
कितनी रहस्यमय मौन की पुकार

स्त्री, तुम्हें समझने के लिए
जन्म लेना पड़ेगा स्त्री रूप में।

 


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